गजमुखासुर और गणेश जी की युद्ध कथा
बहुत समय पहले, एक अत्यंत बलशाली असुर गजमुखासुर ने घोर तपस्या की। उसकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर, शिव जी ने उसे अमरत्व का वरदान दिया। वरदान पाकर, गजमुखासुर अहंकारी हो गया और तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा।
गजमुखासुर का अत्याचार
गजमुखासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को पराजित कर दिया।
सभी देवता भयभीत होकर भगवान गणेश के पास पहुंचे।
इंद्र (घबराए हुए): "हे विनायक! यह राक्षस हमें परास्त कर चुका है। केवल आप ही हमें बचा सकते हैं!"
गणेश जी (गंभीर होकर): "अहंकार और अधर्म अधिक समय तक नहीं टिक सकते। मैं स्वयं उसका अंत करूंगा!"
गणेश जी ने अपना युद्ध कौशल धारण किया और गजमुखासुर को ललकारा।
गणेश जी और गजमुखासुर का भयंकर युद्ध
गजमुखासुर और गणेश जी के बीच घोर युद्ध हुआ। गणेश जी ने अपना परशु (फरसा) चलाया, लेकिन गजमुखासुर अमर होने के कारण हर प्रहार से बचता रहा।
गजमुखासुर (हँसते हुए): "गणेश! तुम मुझसे युद्ध नहीं जीत सकते। मैं अमर हूँ!"
गणेश जी (मुस्कराते हुए): "शक्ति से नहीं, परंतु बुद्धि से हर समस्या का समाधान संभव है।"
गणेश जी ने अपनी चतुराई से अपने वाहन मूषक को एक विशाल और भयंकर सिंह (शेर) में बदल दिया। विशाल सिंह की गर्जना से गजमुखासुर भयभीत हो गया।
गजमुखासुर (काँपते हुए): "यह.. यह कैसे संभव है?!"
गजमुखासुर का पश्चाताप
डर के कारण गजमुखासुर गणेश जी के चरणों में गिर पड़ा और प्रार्थना करने लगा।
गजमुखासुर (दीन भाव से): "हे गणेश जी! मैं अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें और मोक्ष प्रदान करें!"
गणेश जी ने उसे क्षमा करते हुए कहा—
गणेश जी: "जो सच्चे मन से पश्चाताप करता है, उसे मैं अवश्य क्षमा करता हूँ।"
गजमुखासुर ने अपनी शक्ति त्याग दी और गणेश जी ने उसे मोक्ष प्रदान कर दिया।
कहानी से सीख
🔹 अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।
🔹 केवल शक्ति नहीं, बल्कि बुद्धि और चतुराई भी महत्वपूर्ण होती है।
🔹 भगवान गणेश केवल योद्धा ही नहीं, बल्कि दयालु और करुणामयी भी हैं।
"गणपति बप्पा मोरया!" 🙏✨
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