जब मैंने फिल्म स्टार धर्मेंद्र से मिलने का प्रयास किया
जब मैंने फिल्म स्टार धर्मेंद्र से मिलने का प्रयास किया
मैंने अपने करियर की शुरुआत एक चित्रकार के रूप में की थी। मैं कॉमिक्स और ऐनिमेशन बनाता हूँ। आज से करीब 30 साल पहले मैंने तय कर लिया था कि मुंबई जाकर अपनी किस्मत आजमाऊंगा, क्योंकि अभिनय का कीड़ा मेरे अंदर बहुत जोर से कुलबुला रहा था। सो मैंने अपना आर्ट का सामान और कुछ ज़रूरी चीजें बैग में पैक कीं और बिना किसी को बताए मुंबई के लिए निकल पड़ा।
मैं फ्रंटियर मेल में बैठा और अगली सुबह 5:30 बजे बोरिवली स्टेशन पर उतरा। स्टेशन से बाहर निकला तो देखा कि ऑटो रिक्शा की लंबी कतार लगी हुई थी। मैंने एक ऑटो वाले से एक पते पर ले चलने को कहा — ये पता मेरे दिल्ली के एक दोस्त ने दिया था, जिसने कहा था कि कुछ दिन अपने पास रख लेगा।
जब उस पते पर पहुँचा तो देखा कि घर एक छोटी सी पहाड़ी (डोंगरी) पर था, एक गरीब बस्ती में। जिस दोस्त के पास पहुँचा, उसने मुझे देखते ही असहज हो गया। जब मैंने आने का कारण बताया, तो उसने नज़रें नीचे करते हुए कहा, "ये जगह आपके रहने लायक नहीं है।" उसने ये बात मेरे पहनावे और व्यक्तित्व को देखकर कही। मुझे समझ आ गया कि वो मुझे अपने घर में नहीं रखना चाहता। उसकी छोटी सी खोली देखकर भी लगा कि मैं यहाँ एडजस्ट नहीं कर पाऊँगा, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा और वापस लौटने लगा।
पीछे से उसने कहा, "ठहरो, थोड़ी देर चाय-वाय पी लो, फिर किसी लॉज में छोड़ देंगे।" लेकिन मैंने मना कर दिया और कहा कि मैं खुद देख लूंगा। फिर मैं डोंगरी से नीचे उतर आया और तय किया कि किसी लॉज में ही रुक जाता हूँ।
आसपास देखा तो थोड़ी दूर पर एक ऑटो खड़ा था। मैंने उससे पूछा, "भाई, यहाँ आसपास कोई लॉज है?" उसने बताया कि एक सस्ती लॉज है। मैंने कहा, "मुझे वहीं ले चलो।" रास्ते में चलते-चलते उसने पूछा, "जहाँ आप गए थे, वहाँ क्या हुआ?" मैं हैरान होकर बोला, "तुम्हें कैसे पता?" उसने गर्दन मोड़ते हुए कहा, "अरे! मैं ही तो आपको स्टेशन से वहाँ ले गया था।" मैंने गौर से देखा — हाँ, वही था। मैंने उसे सारी बात बताई। उसने कहा, "चिंता मत करो, कुछ दिन लॉज में रह लो, मैं आपके रहने का इंतज़ाम करता हूँ।"
एक बात माननी पड़ेगी — मुंबई के आम लोग बहुत मददगार होते हैं।
हम उस लॉज पर पहुँचे। वो एक जर्जर सी लॉज थी, किराया था ₹30 रोज़ का। मैंने एडवांस में किराया दिया और अपना बैग स्टोर रूम में रख दिया। ऑटो ड्राइवर सागर ने फिर मिलने का आश्वासन देकर विदा ली।
अब सुबह के 8:30 बज चुके थे। मैं फिल्म स्टार धर्मेंद्र का बचपन से बहुत बड़ा फैन रहा हूँ, लेकिन ना कभी उन्हें देखा था, ना समंदर। मैंने सोचा, चलो, चौपाटी चलते हैं — सुना है बहुत मशहूर है — और अगर हो सके तो धर्मेंद्र के घर जाकर उन्हें देख भी लूं।
मैं 203 नंबर की बस पकड़कर चौपाटी पहुँचा। पहले तो लगा कि समंदर है ही नहीं — दूर तक मैदान फैला है और चमकीले कागज़ हवा में उड़ रहे हैं। लेकिन ध्यान से देखा तो समझ आया कि वो समंदर ही था और चमकती चीजें असल में पानी पर पड़ती सूरज की किरणें थीं। कुछ समय समंदर के किनारे बिताया। फिर सोचा किसी से पूछूं धर्मेंद्र का घर कहाँ है। रास्ते में एक सभ्रांत महिला दिखीं — मैंने पूछा तो उन्होंने कहा, "धर्मेंद्र यहाँ थोड़ी रहते हैं, वो तो बांद्रा में रहते हैं।"
मैं खुश हो गया और बांद्रा के लिए टैक्सी पकड़ ली। जब पहुँचा तो टैक्सी ड्राइवर ने पूछा, "किस पते पर जाना है?" मैंने कहा, "धर्मेंद्र के घर जाना है।" उसने पूछा, "कौन धर्मेंद्र? वो फिल्म वाला?" मैंने हाँ में सिर हिलाया। वो बोला, "अरे साहब, वो यहाँ नहीं रहते — वो तो जुहू में रहते हैं, जहाँ से मैं आपको लाया था!" मैंने माथा पकड़ लिया। लंबी साँस लेकर मैंने पूछा, "तुम जानते हो उनका घर?" उसने कहा, "हाँ, मैं गेट तक छोड़ देता हूँ।" मैंने कहा, "ठीक है, चलो।"
वो मुझे जुहू ले गया और एक पॉश इलाके के बंगले के सामने उतार दिया। बाहर एक सिक्योरिटी गार्ड हरे रंग की वर्दी में बैठा था। आज के मुकाबले तब सुरक्षा कम थी। मैंने गार्ड से कहा, "मुझे धर्मेंद्र से मिलना है।" उसने पूछा, "कहाँ से आए हो?" मैंने कहा, "दिल्ली से।" उसने ताना मारते हुए कहा, "यहाँ लोग लंदन, पेरिस, इटली से मिलने आते हैं, तब भी वो नहीं मिलते। दिल्ली से आकर क्या झंडे गाड़ दिए?"
मैंने विनती की, "भाई, मैं उनका बहुत बड़ा फैन हूँ।" उसने कहा, "मैं भी उनका फैन हूँ, इसलिए ये नौकरी की है, लेकिन मुझे भी 6-6 महीने हो जाते हैं, दर्शन नहीं होते!" फिर भी मैंने हार नहीं मानी। तब उसने सुझाव दिया, "जुहू बीच पर उनका स्टूडियो है, वहाँ देख लो। किस्मत अच्छी हुई तो मिल जाओगे।"
मैं ऑटो लेकर स्टूडियो पहुँचा, लेकिन पता चला कि वो अभी-अभी घर के लिए निकल गए हैं। मैं फिर से दौड़ता हुआ उनके घर आया और गार्ड से कहा, "वो स्टूडियो से घर के लिए निकले हैं।" तभी एक कार वहाँ पहुँची। गार्ड ने मुझे एक ओर किया और जल्दी से गेट खोला। कार में 2-3 लोग सवार थे। मुझे कार की खिड़की के पास बैठे एक व्यक्ति की हल्की सी झलक दिखी, लेकिन कार इतनी तेजी से अंदर गई कि मैं पहचान नहीं पाया कि वो धर्मेंद्र थे या कोई और।
गार्ड ने गेट बंद कर दिया। मैंने फिर गुहार लगाई, लेकिन उसने एक न सुनी और कहा, "घर के अंदर किसी को जाने की इजाज़त नहीं है।" मैंने मन ही मन सोचा — कोई फायदा नहीं — और चुपचाप लौटकर बोरिवली की अपनी लॉज पर आ गया।
क्या आपने भी कभी अपने पसंदीदा फिल्म स्टार से मिलने की कोशिश की है? आपका अनुभव कैसा रहा? कृपया कमेंट करके बताएं।
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